रामवन गमन की वजह मंथरा बनीं.. मंथरा कुसंग का दूसरा नाम है : विजय कौशल महाराज

करनाल, अभी अभी। श्री हरि कथा प्रचार समिति व श्री श्याम परिवार की ओर से मंगलसेन सभागार अंबेडकर चौक में श्री राम कथा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। पांचवे दिन श्री रामायण की पूजा करने और व्यास पीठ को नमन करने के बाद कथा सुनाते हुए विजय कौशल जी महाराज ने राम वनगमन का जीवंत संवाद पेश किया। राम सीता लक्ष्मण वन गमन की कथा सुनकर लोगों की आंखें सजल हो गई। संत विजय कौशल ने बताया कि इस दुनिया में सब कुछ निर्धारित है। चाहे देवता हो या भगवान.. आम हो या खास… सबको अपने हिस्से का भुगतान करना पड़ता है। माध्यम कुछ भी हो सकता है। रामवन गमन की वजह मंथरा बनीं.. मंथरा कुसंग का दूसरा नाम है। सनातन काल से ही मंथरा जैसी कुसंगति हर परिवार का हिस्सा रही है। कुसंग की संगति में कैकेयी ने भरत के लिए राज भवन और राम के लिए वनवास मांगा। इसलिए संत महात्मा कहते भी हंै कि कुसंग से दूरी बनाकर रखें। कुसंग ने ही दशरथ जैसे धुरंधर राजा को बेबस किया और उन्हें प्राण भी छोडऩा पड़ा। दशरथ को अंत काल में पता चल ही गया कि पुत्र वियोग में मौत के लिए वह खुद भी जिम्मेवार हैं।
गुरु का अपमान भगवान भी सहन नहीं करते
विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि जीवन में कभी भी किसी भी व्यक्ति को गुरु का अपमान नहीं करना चाहिए। भगवान सब कुछ सहन कर लेते हैं, लेकिन गुरु का अपमान भगवान नहीं सह सकते। गुरु का आगमन भाग्य का द्वार खोलने वाला होता है। गुरु के मार्गदर्शन में ही व्यक्ति का जीवन अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होता है।
ये रहे मौजूद
इस अवसर पर अध्यक्ष कैलाश चंद गुप्ता, प्रधान शशि भूषण गुप्ता, कार्यकारी अध्यक्ष घनश्याम गोयल व पंकज गोयल, उपप्रधान अमन बंसल, महासचिव सुनील गुप्ता, सचिव पुनीत मित्तल, कोषाध्यक्ष सुभाष गुप्ता, पदम सैन गुप्ता, नवदीप मित्तल, डॉ एस.के. गोयल, रामकुमार गुप्ता, आशीष गुप्ता, सुनील, आशीष, अजय, मुनीश, सचिन, विवेक व हरिप्रकाश आदि मौजूद रहे।